व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं से शुरू होकर व्यक्तिगत समस्याओं में उलझे हुए ज्यादातर लोगों में से आज किसी से भी पूछिये तो हर कोई किसी ना किसी संकट या परेशानी में अपने आपको घिरा हुआ पाता है. महत्वाकांक्षाओं और उससे उपजी समस्याओं का जाल इतना घना होता जा रहा है कि हर व्यक्ति स्वयं को पीड़ित महसूस करता है जबकि वास्तविकता यही है कि हमारे इर्द-गिर्द समस्याओं का जो जाल फैला हुआ है उसके नब्बे प्रतिशत के जिम्मेदार हम स्वयं है.
अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के निवारण के लिए हम तमाम तरह के उपाय ढूंढते हैं कोई इसके लिए ग्रह और नक्षत्र को दोष देता है तो कोई अपने भाग्य को कोसता है. तमाम उपायों के बाद भी ऐसा लगता है जैसे जीवन सेशांति, स्वास्थ्य, खुशियाँ और सदभाव छिनती चली जा रही है। दोष निवारण के लिए जिसने जो बताया वो सब करने का प्रयास भी सार्थक नहीं होता और मुसीबतें ज्यों की त्यों.
ऐसा क्यों हो रहा है इसके कारणों को समझने के बजाय हम अपने कृत्यों से अपनी परेशानियों की फेहरिस्त और लम्बी करते चले जाते हैं. जबकि खुशहाल जीवन के लिए हमारे ऋषियों-मुनियों ने कुछ नियम बताए थे. इन नियमों जिन्हें ऋषियों और शास्त्रों के संविधान की संज्ञा दी जाये तो सर्वथा उचित होगा, का अनुपालन ना करके आज व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं बल्कि हम पारिवारिक, समाजिक, राष्ट्रीय और कहीं ना कहीं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मात खा रहे हैं.
शास्त्रों में लिखा है कि बुद्धं शरणं गच्छामि इसका अर्थ तो ये हुआ कि जब आप किसी परेशानी में हों तो बुद्धिमान जनों की शरण में जाएँ. उसके आगे लिखा है धम्मं शरणं गच्छामि अर्थात यदि बुद्धिमान लोगों के संगत में जाकर भी आपकी समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा हो तो बुद्धिमान के साथ ही धार्मिक लोगों की शरण में जाइये. यदि समस्याओं का समाधान वहां भी नहीं निकले तो फिर आगे कहा गया है कि संघं शरणं गच्छामि. अर्थात समस्याओं के पूर्ण निवारण के लिए बुद्धिमान और धार्मिक लोगों के समूह में जाइए.
परन्तु समस्याओं का जाल इतना फ़ैल चुका है कि बुद्धिमान और धार्मिक लोगों के समूह में जाकर भी इनका निदान नहीं हो पा रहा है. पर निश्चित रूप से ऐसे में निराश होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि समस्याओं के निवारण के लिए जिस श्रेष्ठतम उपाय को हम विस्मृत कर चुके थे. यह उपाय है योगं शरणं गच्छामि.
योगं शरणं गच्छामि अर्थात जब कहीं से भी समस्या का कोई निदान नहीं हो सके तो योग के शरण में जाकर देखिये. यकीन मानिये योग में समस्त समस्याओं का समाधान है. समस्या व्यक्तिगत हो या पारिवारिक, सामाजिक हो या राष्ट्रीय और या फिर अंतर्राष्ट्रीय, योग में वह अदभुत क्षमता है सभी प्रकार की समस्याओं का निराकरण कर सकती है. संभवतः इसीलिए एक वर्ष पूर्व इक्कीस जून को पूरे विश्व ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने पर अपनी सहमति दी और इस वर्ष पूरा विश्व धूमधाम से दूसरा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मना रहा है.
अब तो योग से शारीरिक और मानसिक बिमारियों का दूर हो जाना एक छोटी और सामान्य सी बात हो चुकी है, इंतज़ार तो उस दिन का है जिस दिन योग को उसके सही मायने में हमने पूरी तरह से अपना लिया. निश्चित रूप से उस दिन दुनिया में कोई बुराई शेष नहीं रह जाएगी. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है महर्षि पतंजलि द्वारा योग दर्शन में लिखा हुआ प्रथम सूत्र – अथ योगानुशासनम. बीमारी हो या कोई अन्य समस्या, उसकी शुरुआत होती है, अनुशासन के भंग होने से इसलिए समाधान के लिए यह प्रथम सूत्र ही अपने आपमें सब कुछ समझा जाता है. अष्टांग योग में योग के जिन आठ अंगों के बारे में बताया गया है वे सभी अंग वास्तव में जीवन को अनुशासित ढंग से कैसे जियें इसी के बारे में बताते हैं. अष्टांग योग का प्रथम अंग अर्थात यम. यम यानि कि सामाजिक आचरण के नियम. इसी प्रकार दूसरा अंग है नियम, नियम यानि कि व्यक्तिगत आचरण के नियम. अष्टांग योग के ये दो अंग ही पर्याप्त हैं समस्त बुराइयों का नाश करने के लिए और इसके आगे जब हम आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि की बातें करते हैं तो फिर तो चमत्कार ही घटित होता है.
इसलिए यदि समस्याओं का समाधान ढूँढना है तो क्यों ना हम सभी कहें –योगं शरणं गच्छामि.
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