फैशन के इस दौर में गारंटी की इच्छा ना करें, यह वाक्य अकसर कपड़ों आदि की दुकानों पर लिखा मिल जाता है और साथ ही हिदायत यह भी कि कपड़े को मशीन में ना धुलें, धूप में ना सुखायें आदि-आदि. अब ये तो फैशन है आज का कुछ और चलन है तो कल को चलन बदल जायेगा. करना क्या है, कपड़ा दूसरा लायेंगे.
आजकल यही स्लोगन हमारे जीवन की वास्तविकता भी बन गयी है जहाँ स्वयं की जिंदगी की भी कोई गारंटी नहीं बची है. फैशन ने इस दौर ने खान-पान, रहन-सहन को ऐसा कर दिया है कि हर शरीर में कोई ना कोई बिमारी मौजूद है. मजे की बात ये है कि बिमारी का पता तब चलता है जब यह शरीर का आंतरिक सिस्टम अपनी लड़ाई से थक कर कमजोर पड़ जाता है. फिर शुरू होता है सिलसिला डॉक्टरों के पास दौड लगाने का, जहाँ सबसे पहले तो लाइन लगाकर अपने नंबर का इंतज़ार कीजिये, फिर ढेरों मंहगे मेडिकल परीक्षण करवाइए, उसके बाद अपने नाश्ते और खाने में दवाइयों को भी शामिल कर लीजिए. बिमारी कहीं ज्यादा बढ़ी हुयी हो तो नौबत शल्य चिकित्सा की आ जाती है जहाँ शपथपत्र पहले ही भरवा लिया जाता है कि जिम्मेदारी डॉक्टर महोदय की नहीं बल्कि बीमार के परिजन की है.
सोचकर देखें कि जब भी हम कोई भी सामान खरीदते हैं तो हमें उसके साथ उसकी उपयोग विधि, रख-रखाव आदि के लिए अनुदेश, नियम, शर्तें एवं सावधानियां आदि की विवरण पुस्तिका भी उसके साथ मिलती है. और कंपनी द्वारा उस सामान की वारंटी-गारंटी को भी तभी मान्यता दी जाती है जब उस पुस्तिका में लिखे निर्देशों का ठीक प्रकार से पालन किया गया हो.
अब चूँकि एक तो नया सामान और ऊपर से उसमें लगा होता है हमारी मेहनत का पैसा, ऐसे में उसके प्रयोग को लेकर हम कितने सावधान होते हैं. पर क्या अपने इस बेशकीमती शरीर के बारे में हम ऐसा सोचते हैं?
स्वस्थ जीवन के लिए भी कुछ इसी तरह के नियम और शर्तें हम सभी के लिए आवश्यक हैं. जिस प्रकार से आधुनिक तकनीक से बने तमाम सामानों में हाई वोल्टेज और हाई करेंट से बचने के लिए विभिन्न सेंसर प्रयोग होते हैं उसी प्रकार हमारे शरीर में भी अनेकों सेंसर लगे हुए हैं जो समय-समय पर हमें सचेत करते रहते हैं. कुछ इसी प्रकार हमारे शरीर में भी कई प्रकार के अन्तः और वाह्य उपकरण और सेंसर प्राकृतिक रूप से लगे हुए होते हैं.
ह्रदय, यकृत, गुर्दा, आमाशय, ग्लैंड्स आदि अनेकों महत्वपूर्ण अन्तः उपकरणों के साथ ही देखने के लिए आँखें, सुनने के लिए कान, सूंघने के लिए नाक, महसूस करने के लिए त्वचा आदि सेंसर भगवान दे रखे हैं. कार्य करने के लिए हाथ और भागने दौड़ने के लिए पैर भी मिला हुआ है और इन सबसे ऊपर है हमारे पास हमारा मस्तिष्क है जो इन सभी को आवश्यकतानुसार उचित और अनुचित के बारे में निर्देशित करता रहता है.
जिस प्रकार बाजार से ख़रीदे हुए सामान की देखभाल हम बहुत ही जतन पूर्वक करते हैं, जरुरी है कि उसी प्रकार हम अपने शरीर के बारे में भी थोड़ा सजगतापूर्वक सोचें. अन्यथा स्वास्थ्य के साथ ही समय और पैसा तो नष्ट होगा ही दोस्तों और रिश्तेदारों की परेशानियां भी बढ़ेंगी. यही नहीं जीवन में जिन खुशियों को पाना चाहते हैं बगैर अच्छे स्वास्थ्य के उसका अहसास संभव ही नहीं है.
इन सबके लिए करना कुछ भी इन्हीं है बल्कि अपने व्यस्त समय में से प्रतिदिन एक से डेढ़ घंटे का समय खुद के लिए निकालना होगा. इस एक से डेढ़ घंटे में अपनी सांसों पर थोड़ी देर ध्यान को टिकाते हुए अपनी आत्मा यानी स्वयं का अध्ययन कीजिये. सामान्य सांसों की बजाय सांसों को थोडा कलात्मक ढंग से लीजिए और छोडिये अर्थात कुछ प्राणायामों का अभ्यास कीजिये. साथ ही समान्य रूप से हाथ पैर हिलाने और मोड़ने की बजाय उन्हें कुछ विशिष्ट ढंग से हिलाएं और मोड़ें यानि आवश्यकता के अनुसार कुछ आसनों का अभ्यास भी कीजिये. स्वयं पर यह छोटा सा प्रयोग शरीर के बाहरी और आतंरिक दोनों ही सौंदर्य को निखार देगी.
फैशन के इस दौर में फैशन कितना भी कर लें पर स्वस्थ जीवन के माध्यम से सुखी जीवन के फैशन को नजरअंदाज ना करें. कतई आवश्यक नहीं कि इसके लिए भारी-भरकम पैसे ही खर्च किये जाएँ या घर छोड़कर कहीं दूर जाया जाए बल्कि आवश्यक है कि योग के फैशन को अपनाया जाये.जिसक लिए कहीं जाने की जरुरत नहीं बल्कि उसे अपनाने के लिए अपने घर की छत, छत ना हो तो बालकनी या फिर आस-पास के पार्क में भी जाया जा सकता है.
चलते-चलते अंतिम बात, समय से सोइए और समय से जागिये, खुद भी जागिये औरों को भी जगाइए. फैशन के इस दौर में किसी बात की गारंटी हो या ना हो पर योग में स्वास्थ्य की गारंटी सौ प्रतिशत अवश्य है.
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