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उत्पादों के प्रचार के लिए विज्ञापनों का होना जरुरी भी है और ठीक भी है परन्तु जब समाचारों का आधार भी विज्ञापन के आधार से ही मेल खाने लगे तो यह पत्रकार और उसकी पत्रकारिता को कठघरे में खड़ा करना शुरू करती है. समाचार पत्रों के मामले में प्रायोजित समाचारों का असर उतना कारगर नहीं सिद्ध होता है जितना कि दूरदर्शन के समाचारों का, क्योंकि दूरदर्शन पर एक ही समाचार बोल-बोल कर सुनाये और रटाए दोनों ही जाते हैं इसलिए खतरा अख़बारों में छपी ख़बरों से कम और दूरदर्शन पर होने वाले प्रायोजित समाचारों से ज्यादा है क्योंकि जो कोई भी व्यक्ति किन्हीं भी कारणों से अख़बार पढ़ नहीं सकता, बुद्धू (पर अब बेहद चालाक) बक्से के माध्यम से आसानी से उन तक पहुँच बनाना ज्यादा आसान और कारगर तरीका है. अतः पत्रकारिता आज अंग्रेजी के दोनों कैरियर यानि समाचार वाहक या संवाहक और जीविका दोनों ही रूपों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है साथ ही रसूखदार लोगों से जान-पहचान और उठने-बैठने का मौका भी देती है.
पत्रकारिता के मामले में भारतीय पत्रकारिता स्वतंत्रता संग्राम के समय से ही अत्यंत प्रभावी और गौरवपूर्ण रही है. उस समय में दूरदर्शन का उदय नहीं हुआ था इसलिए कई बड़े नेता या तो स्वयं समाचार पत्रों में लिखते थे या फिर अपना समाचार पत्र ही निकालते थे जिससे उनकी नीयत और नीतियों दोनों से ही लोग वाकिफ होते थे. पर आज स्थिति और पारिस्थिति दोनों ही बदल चुकीं हैं, आज ज्यादातर नेताओं के विचार और भाषण भी प्रायोजित से लगते हैं जिन्हें नेताओं को मंच पर खड़े होकर बस शब्दों में ढालना होता है, शायद समय की कमी होगी, ऐसे में वे अख़बारों में कहाँ लिख सकेंगे या शायद उन्हें भी पता है कि चार रूपये के अख़बार में छपी खबर तारीख बदलते ही रद्दी में फेंक दी जाती है.
इसलिए ऐसे समय में एक टी.वी. पत्रकार की भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाती है पर क्या सभी टी.वी. पत्रकार अपनी भूमिका ईमानदारी से निभा रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि खोजी और साहसिक पत्रकारिता की आड़ में कुछ पत्रकार अमर्यादित आचरण करने लग गए हैं या फिर व्यवसायीकरण की चकाचौंध उन्हें लील रही है क्योंकि अकसर प्रस्तुतीकरण से ऐसा लगता है जैसे कि विशेष चैनल या पत्रकार ने जैसे किसी व्यक्ति विशेष या संस्था की सुपारी ही ले ली हो. क्या यह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ जो भले ही किसी सदन का चयनित सदस्य नहीं हो, पर एक गहराता धब्बा नहीं साबित हो रहा है?
एक सच्चे पत्रकार को अपनी पत्रकारिता के समय यह ध्यान रखना ही होगा कि उसके द्वारा की गयी कहानी, स्टिंग ऑपरेशन, खोजी पत्रकारिता, राष्ट्रीय मूल्यों को और राष्ट्रीय गौरव को प्रोत्साहित करने वाली हो क्योंकि आज जब तमाम चुनाव सर पर हैं और सबसे अहम चुनाव लोकसभा का आने वाला ही है तब एक मतदाता उसे मिल रही सूचनाओं पर आश्रित होकर अपना निर्णय सुनाएगा और जब तक देश की जनता को सही और विश्वसनीय सूचनाएं नहीं मिलेंगी तब तक जनता अपने लिए उपयुक्त नेता नहीं चुन पाएगी. पूर्वाग्रहों से ग्रस्त, प्रीपेड या पोस्टपेड समाचारों से जनता के निर्णय गलत हो सकते हैं जो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए निश्चित रूप से घातक सिद्ध होगा. वैसे भी आज शक्ति संपन्न लोग सत्ता और बाजार के साथ ही हमारी सोच पर भी कब्ज़ा करते जा रहे हैं ऐसे में पोस्ट पेड़ और प्री पेड सिम कार्ड की तरह निकलने वाले समाचार, पत्रकार और पत्रकारिता का अमर्यादित आचरण, भारतीय लोकतंत्र को एक सार्थक और सक्षम नेतृत्व प्रदान करने से दिशाभ्रमित कर सकता है. उम्मीद है लोकतंत्र का चौथा खम्बा अपनी पूरी मजबूती, ईमानदारी के साथ अपने बल पर खड़ा रहकर अपने कार्य को स्वस्थता पूर्वक अंजाम देगा.
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