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कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं उनकी

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उन्होंने लोगों को योग के माध्यम से व्यक्तिगत और सामाजिक आचरण का नियम सिखाया है बावजूद इसके कभी अर्ध रात्रि में उनके और उनके सोते हुए समर्थकों पर पुलिसिया आक्रमण होता है, कभी उन्हें टैक्स चोरी करने का नोटिस मिलता है, कभी उन पर अपने गुरु को गायब कर देने का आरोप लगाया जाता है, कभी दवाओं में मिलावट करने का आरोप लगाया जाता है, कभी मिस-ब्रांडिंग का आरोप मढ़ा जाता है, कभी उनके ट्रस्ट पर किसी लड़के को अगवा करने का आरोप लगाया जाता है और बाद में लड़काः स्वयं मुकर जाता है, कभी उन्हें हीथ्रो एयरपोर्ट पर घंटों रुकवा दिया जाता है, कभी उन पर प्रेस कांफ्रेंस में स्याही फिंकवाई जाती है, कभी उन्हें कोई ठग कह देता है तो कोई व्यापारी कहता है फिर भी ना तो वे कभी रुकते हैं और ना ही कभी थकते हैं, हमेशा चेहरे पर वही तेज लिए पता नहीं किस मिट्टी के बने हैं वो.

जब ध्यान में उतरते हैं तो चेहरा सूर्य की तरह चमकने लगता है, जब मुस्कुराते हैं तो एक बच्चे की तरह खिलखिला पड़ते हैं, जब योगासन और प्राणायाम करते हैं तो लगता है जैसे उनका शरीर रबर से बना हुआ है. सुबह तीन-साढ़े तीन बजे से रात के दस-ग्यारह बजे तक बिना रुके, बिना थके, दो दशकों से लगातार लगे हुए हैं वो – आखिर किसके लिए? देर तक सोने वालों को उन्होंने सुबह उठना सिखा दिया, रोगों से त्रस्त लोगों को उन्होंने निरोगी बना दिया, जीवन से ऊब चुके लोगों को जीवनमय कर दिया. इस ज़माने में जहाँ बिना पैसे के कोई किसी का एक काम नहीं करता, उसने अपनी प्रेरणा से उन्होंने लाखों लोग तैयार कर दिये जो अपनी नींद की परवाह किया बगैर बिना किसी पारिश्रमिक, लोभ या लालच के चाहे गर्मी हो या बरसात या फिर शीत लहर चल रही हो, सुबह के पाँच बजे वर्ष के तीन सौ पैसठों दिन लोगों को नियमित निःशुल्क योग सिखाने लग गए. क्या कुछ नहीं किया उन्होंने इस देश और इस देश के वासियों के लिए. फिर भी क्या कुछ नहीं देखना पड़ रहा है उन्हें अपने जीवन में, आखिर दोष है उनका? आखिर उन्हें क्या पड़ी थी जो यह सब करते हुए उन्होंने उस सत्ता की परवाह नहीं की जिसे पाने के लिए बड़े-से-बड़े लोग भी तरसते हैं.

क्या राज सत्ताओं पर विराजे लोगों को राज धर्म निभाने की प्रेरणा देना गलत है? क्या स्वदेशी का जागरण चलाकर लोगों में स्वदेशी के प्रति एक नए उत्साह को भरना और देश डूबती अर्थ व्यवस्था को फिर से नए सिरे से खड़ा करने के राह सुझाना गलत है? क्या देश के लुटे हुए और विदेशी बैंकों की शोभा बढ़ा रहे लाखों करोड़ रुपयों का हिसाब मांगना गलत है? अगर इन और इन जैसे तमाम प्रश्नों का उत्तर नहीं है तो फिर उनके साथ इतना सब कुछ गलत क्यों और किसके इशारे पर हो रहा है? आखिर क्यों उनकी शख्सियत पर बार-बार प्रश्न चिन्ह लगाया जा रहा है? जो भी हो चूँकि वे सत्य की रह पर हैं, इसीलिए वे आज भी सभी के प्रिय हैं.

“कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे-ए-जहाँ हमारा”, प्रसिद्द शायर मोहम्म्द इक़बाल की यह पंक्तियाँ उनके ऊपर शत-प्रतिशत फिट बैठती हैं. आज देश ही नहीं अपितु पूरे विश्व को चिकित्सा के नैनो टेक्नोलॉजी अर्थात प्राणायाम से परिचित कराने वाले स्वामी रामदेव ने जिस प्रकार से विदेशों में जमा काले धन के साथ ही लोगों में स्वदेशी के प्रति अपने अभियान से जागरूकता फैलाई है और साथ ही राज, नीति और धर्म को सुभाषित करते हुए जन जागरण का अभूतपूर्व किया है, निश्चित ही उससे एक विशेष राजनीतिक पार्टी को पता नहीं क्यों जबरदस्त राजनीतिक नुक्सान उठाना पड़ रहा है. यह नुक्सान सिर्फ राजनीतिक जनाधार का ही नहीं बल्कि उससे कहीं ज्यादा ही है जिसकी भरपाई शायद वह पार्टी कभी ना कर पाये।

इसलिए जब यह खबर आयी कि उत्तराखण्ड की कांग्रेस सरकार ने एक नया रिकॉर्ड कायम करते हुए स्वामी रामदेव के खिलाफ एक ही दिन में 81 मुकदमे दर्ज कराये हैं तो किसी को भी आश्चर्य नहीं हुआ. प्रश्न उठता है कि जिस योग गुरु के योग शिविरों में देश ही नहीं अपितु विश्व की तमाम हस्तियां शामिल होने के लिए कतारबद्ध रहती थीं अचानक ही  04 जून 2011 के बाद से वे और उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण इतने बड़े अपराधी क्यों और कैसे हो गए?  जिनके लिए प्रोटोकाल से भी अलग हटकर सरकार के चार-चार कबीना मंत्री हवाई अड्डे पर पलक-पांवड़े बिछाते थे आज उन्हीं के अधीन आने वाली  सभी जांच एजेंसियां उनके आश्रमों में आखिर क्या तलाश करने की कोशिश कर रही हैं? आखिर वे किन कार्यों के कारण वर्तमान सरकार की नजरों में एक खूंखार अपराधी हो गए हैं?

सरकार का यह प्रतिशोधात्मक रवैया समझना मुश्किल नहीं है पर यह समझना जरुर मुश्किल है कि लोकतंत्र में राजनीति की परिभाषा भ्रष्ट व्यवस्थाओं के खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाना ही क्यों है. इसमें कोई दो राय नहीं सरकार के पास हर प्रकार की शक्तियां होतीं हैं और उसे टक्कर दे पाना खोई हँसी खेल नहीं.

बहरहाल सरकार कुछ भी कहे या करे पर स्वामी रामदेव ने लोगों को सांस लेने की कला सिखाते-सिखाते प्रत्येक आम आदमी की सांसों में व्यस्था परिवर्तन की लड़ाई के शंखनाद को उतार चुके हैं. ऐसे में यदि केंद्र सरकार में बैठे लोग यह सोचते हैं कि उत्तराखंड सरकार की आड़ में मुकदमों का अंबार खड़ा करके  युग दृष्टा स्वामी रामदेव को झुठलाकर सत्य और सत्यता को पराजित किया जा सकता है तो यह कांग्रेस की एक और भूल है. लाला लाजपत राय ने अपनी आत्म कथा में लिखा है कि कांग्रेस के नेताओं को देखकर लगता है कि उन्हें देश, धर्म की अपेक्षा ख्याति का अधिक ध्यान है, ख्याति तक तो ठीक था परन्तु अब स्थिति बद से बद्तर हो चुकी है.

स्वामी रामदेव अक्सर कहते हैं कि सत्य परेशान तो हो सकता है परन्तु पराजित नहीं इसलिए सत्य और असत्य की इस लड़ाई में यह  देखना काफी दिलचस्प होगा कि असत्य कब, कैसे और किसके द्वारा पराजित होता है क्योंकि आगामी लोकसभा चुनाव अब ज्यादा दूर नहीं रह गया है और भारत को फिर से विश्व गुरु बनाना स्वामी रामदेव की शास्वत प्रज्ञा है.

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