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डेंगू से बचाव का अचूक नुस्खा

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मौसम के बदलते मिजाज के साथ ही शरीर रोगों की चपेट में आने लगता है, क्या करें दिनचर्या ही हमने ऐसी बना ली है, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता तो कम हुयी ही है साथ में वातावरण भी प्रदूषित हो चुका है. ना पानी शुद्ध है, ना हवा और ना ही फल और सब्जियां.

इस अव्यवस्थित जीवनचर्या और खानपान के मध्य घर के किसी भी सदस्य का बीमार पड़ना पूरे परिवार को तंग करता है, स्वास्थ्य के साथ ही समय और पैसे सबकी बर्बादी होती है. बचाव का एकमात्र उपाय है नियमित योगाभ्यास, पर नहीं अपनाने के बहाने भी हजारों हैं. मेहनत से कमाया हुआ पैसा डॉक्टर और दवा में खर्च हो जाता है. जरा सा मौसम बदला नहीं, लगने लगी डाक्टर के पास लंबी लाइन. जहाँ एक ओर बारिश की बूँदें गर्मी से छुटकारा दिलाने का वादा करती हैं तो वहीं दूसरी तरफ बारिश के बाद और शीत ऋतु आने के पूर्व अनेकों प्रकार की बीमारियों का आगमन भी होने लगता है और इन्हीं बीमारियों में से एक है डेंगू. इस बीमारी का नाम जितना छोटा है उसके ठीक विपरीत यह रोगी को एक खतरनाक स्तर तक ले जाती है यहाँ तक कि उसकी जान भी जा सकती है. डेंगू का मुख्य कारण एडीज मच्छरों द्वारा मानव शरीर में विषाणु पहुंचाना हैं, सामान्यतया ये मच्छर दिन मे काटते हैं जिससे पीड़ित को अचानक तीव्र ज्वर होता है. तीव्र ज्वर के साथ ही तेज सिर दर्द, मांसपेशियों तथा जोडों मे दर्द एवं कभी-कभी शरीर पर लाल चकते भी पड़ने लगते हैं. इसके अतिरिक्त पेट का खराब होना, दर्द होना, कमजोरी महसूस होना, चक्कर आना आदि भी लक्षण इसके कुप्रभाव के रूप मे देखे जा सकते हैं एवं निम्न रक्त दाब की समस्या भी हो सकती हैं. वैसे डेंगू के शुरुआती लक्षणों में रोगी को तेज ठंड लगती है, सिरदर्द, कमरदर्द और आंखों में तेज दर्द हो सकता है इसके साथ ही उसे लगातार तेज बुखार रहता है. कई लोगों में चक्कर आने से बेहोशी भी देखी गई है एवं त्वचा पर रैशेज़ भी हो जाते हैं पर सबसे गंभीर समस्या होती है रोगी में प्लेटलेट्स की संख्या में तेजी से कमी होती है.

भारतवर्ष में वैसे भी मच्छरों का आतंक कुछ ज्यादा ही है, फॉगिंग मशीनों द्वारा दवाओं का छिडकाव, अस्पतालों में दवाओं और डाक्टरों की स्थिति के साथ ही रिहायशी स्थानों पर गन्दगी के अम्बार की स्थिति किसी से भी छुपी हुयी नहीं है. जब बीमारी विकराल रूप ले लेती है, तीमारदार हो-हल्ला मचाते हैं, और लोगों की परेशानियां समाचार पत्रों और टेलीविजन की सुर्खियाँ बनते हैं तब सरकार और प्रशासन भी जागरूकता बढ़ाने के लिए विज्ञापन देते हैं और बवाल से बचने के लिए कागजी निर्देश जारी किये जाते हैं. कुछ समय पश्चात मौसम फिर करवट लेता है और लोग सब भूलकर सर्दियों का आनंद लेने लग जाते हैं. पर दुखद यह है कि इन सबके बीच कुछ लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त होते हैं तो कुछ दवाओं और प्लेटलेट्स में अपनी जमा पूँजी लुटा चुके होते हैं जबकि डेंगू से बचाव के लिए निहायत ही आसान, आसानी से उपलब्ध घरेलू नुस्खा अभी भी सुर्खियाँ नहीं बटोर सका है. आज के युग में हर चीज वैज्ञानिक तथ्यों और कसौटियों पर कसी जाने के बाद ही उपयोग में लाये जाने का प्रचलन है परन्तु भारत में आज भी घरेलू उपचार एवं जड़ी-बूटियों का उपयोग लोगों के मध्य भरोसा बनाये हुए है. इसका कारण भी है, एक तरफ जहाँ आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था मंहगी और आम आदमी की पहुँच से बाहर हो जाती है वहीं उसके साइड इफेक्ट भी होते हैं जबकि औषधीय पौधे आसानी से उपलब्ध होने के साथ अपना कोई नकारात्मक प्रभाव रोगी पर नहीं छोड़ते हैं और उनमें बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी खूब होती है.


गिलोय
गिलोय

जहाँ तक डेंगू की बात है तो हर वर्ष की भांति ही इस वर्ष भी डेंगू विकराल रूप लेकर उत्तर भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों में सामने है. इस रोग में जो सबसे खतरनाक लक्षण रोगी में उत्पन्न होता है वह है प्लेटलेट्स की संख्या तेजी से कमी जिसका पता जांच के बाद ही चलता है.  आमतौर पर बुखार तो 6 से 7 दिन रहता ही है जिसे चिकित्सक पेरासिटामोल और क्रोसिन जैसी अंग्रेजी दवाओं से नियंत्रित करते हैं परन्तु प्लेटलेट्स की संख्या, जो कि एक स्वस्थ व्यक्ति में डेढ़ से साढ़े चार लाख तक होनी चाहिए, को बनाये रखने के लिए आधुनिक चिकित्सा पद्धति में मात्र एक ही उपाय है और वो है रोगी को अलग से प्लेटलेट्स चढाये जाएँ. प्लेटलेट्स बढाने का सबसे सरल और कारगर उपाय है, गिलोय की लगभग 20  सेंटीमीटर लम्बी डंडी जिसकी मोटाई करीब छोटी ऊँगली के बराबर हो, के साथ पपीते के 3  हरे पत्ते को पीस कर रस निकाल लें व मोटे छन्नी से छान कर मरीज को यदि छः से आठ घंटे के अन्तराल में देते रहें तो प्लेटलेट्स में अद्भुत तरीके वृद्धि हो जाती है साथ ही बुखार भी नियंत्रित हो जाता है और डेंगू का रोगी पूरे दावे के साथ ठीक किया जा सकता है. गिलोय यदि ना मिले तो गिलोय घनवटी दो-दो टेबलेट छः से आठ घंटे पर दिया जा सकता है. बुखार किसी भी प्रकार का हो, अंग्रेजी दवा से कहीं ज्यादा गिलोय कारगर है ऐसा मेरा अनुभव है. इसके अतिरिक्त गेहूं घास का रस भी अत्यंत लाभकारी है एवं साथ में अनार और सेब का रस भी दिया जा सकता है. गेहूं घास का रस तुरंत उपलब्ध नहीं हो पाता है क्योंकि उसे उगाने में समय लगेगा अतः उसके स्थान पर सेब का रस उपयोग किया जा सकता है.


पपीते का पत्ता
पपीते का पत्ता

केवल गिलोय एवं पपीते के पत्ते के रस का उपयोग कर मैंने स्वयं कई लोगों को डेंगू से छुटकारा दिलवाया है इसलिए इन उपायों को उनके अनुभवों के आधार पर मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ लिख रही हूँ, डेंगू से बचाव का यह एक अचूक नुस्खा है जिसका कोई और विकल्प नहीं है. गिलोय को अमृता भी कहते हैं और अमृत यानि जो ना स्वयं मरती है और ना ही दूसरों को मरने देती है तथा बहुत ही आसानी से उपलब्ध भी है.

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