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वर्ष 1883 में 11 सितंबर जब शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद ने शून्य की महिमा जब बताई और उसे ब्रह्म साबित कर दिया तो पूरा विश्व अचंभित रह गया तालियों की गडगडाहट के बीच पूरे विश्व में शून्य के विशेष महत्व को लोगों ने समझा और इस प्रकार विवेकानंद ने अपने अद्भुत और अभूतपूर्व उद्बोधन के माध्यम से भारतीय धर्म दर्शन अद्वैत वेदांत की श्रेष्ठता का जब डंका बजाया तो पूरा विश्व अचंभित हुए बिना नहीं रहा.
इसी कड़ी में बात 18 नवंबर, 1896 की भी करती चलूँ जब लंदन में विवेकानंद ने अपने एक व्याख्यान में कहा था कि मनुष्य जितना स्वार्थी होता है, उतना ही अनैतिक भी होता है और शायद आज हमारी भारतीय राजनीति के रोम-रोम में वही स्वार्थीपन घर कर चुका है. क्योंकि हमारे गणितज्ञों की जिस गणित की देन की मैं बातें लिख रही थी उसी गणित को आज राजनीति ने एक नया नाम दे दिया है जोड़-तोड़ की गणित और उसका शुभांक है दो सौ बहत्तर.
विवेकानंद के बारे में जब कभी भी पढ़ती हूँ तो उनकी एक दो बातें दिल को गहराई से छूतीं हैं जैसे प्रत्येक आत्मा में अनंत शक्ति विद्यमान है इसलिए उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति से पूर्व मत रुको. हर व्यक्ति या संस्था के लिए लक्ष्य की परिभाषा भी अलग हो सकती है जैसे कि राजनीतिज्ञों ने अपने लिए लक्ष्य निर्धारित किया है दो सौ बहत्तर का आंकड़ा.
यद्यपि राजनीति के बारे में ना तो बहुत ज्यादा जानकारी है मुझे और ना ही मैं इस क्षेत्र में किसी प्रकार का कोई दखल ही रखती हूँ क्योंकि राजनीति और क्रिकेट दोनों ही आपको मूर्ख बनाने के सिवा कुछ और नहीं करते तथापि भारतवर्ष की वर्तमान राजनीतिक उठापटक ने हमेशा से मुझे इसे बारे में सोचने, लिखने और इस पर बहस के लिए प्रेरित किया है. वैसे देखा जाए तो आज तक राजनीति में मेरी दखल बस इतनी है कि किसी भी स्तर का कोई भी चुनाव हो मैंने कभी भी अपने मत को दान नहीं किया बल्कि हर बार हर मौके पर उपस्थित रहकर मतदान जरुर किया. पर गणित मेरा प्रिय विषय रहा है इसलिए जब दो सौ बहत्तर अंक के बारे में ध्वनि तरंगें मेरे कानों में गूंजीं तो मन फिर कुछ लिखने को हुआ.
रविवार यानी अवकाश का दिन था, आराम का मूड भी हो रहा था साथ ही टेलीविजन के चैनलों को बदलते-बदलते थोड़ी बोरियत भी हो रही थी सो पतिदेव एवं बच्चों के साथ मैं भी कैरम बोर्ड खेलने बैठ गयी. तभी सभी समाचार चैनलों ने शोर मचाना शुरू कर दिया कहा कहीं मत जाइयेगा बस बने रहिये हमारे साथ, जल्द ही लौट कर आते हैं और ले चलेंगे सीधे आपको बिहार की राजधानी पटना में जहाँ से कुछ ही देर में एनडीए के संयोजक एवं जदयू के अध्यक्ष शरद यादव एवं बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार की संयुक्त प्रेस वार्ता का सीधा प्रसारण आप देख सकेंगे. कैरम के गेम से ध्यान हटकर एक बार फिर टेलीविजन की ओर केंद्रित हो गया क्योंकि भारतीय राजनीति आज जो करवट लेने जा रही थी उसका सीधा असर देश की राष्ट्रीय राजनीति के ऊपर पड़ना था.
कैरम का गेम पॉज हो गया और पूरे परिवार का ध्यान प्रेस कांफ्रेंस की ओर चला गया जहाँ शरद यादव ने घोषणा की कि अब वे एनडीए के संयोजक पद से इस्तीफा दे रहे हैं और नीतीश कुमार ने जदयू को एनडीए से अलग करने की घोषणा भी की. दो बातें गौर करने वालीं थीं एक तो बिना नाम लिए नरेंद्र मोदी की साम्प्रदायिकता और दूसरा दो सौ बहत्तर का आंकड़ा जिसे छू लेने की हसरत आज सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के सीने में है, ये अलग बात है कि इस गिनती को पूरा करने के लिए वे कुछ भी करने को तैयार हैं. थोड़ा आश्चर्य भी हुआ कि आखिर सत्रह साल क्यों लग गए जदयू विशेष तौर पर नीतीश को ये समझने में कि नरेंद्र मोदी सांप्रदायिक हैं. इसका अर्थ तो यही हुआ कि कांग्रेसी उनसे कई गुना समझदार और तीक्ष्ण बुद्धि के हैं जो वे जदयू के राजग से लगा होने की घोषणा के केवल सत्रह मिनटों के अंदर ही ये समझ गए कि नीतीश सांप्रदायिक नहीं हैं.
खैर इस दो सौ बहत्तर के आंकड़े के लिए कुछ भी करने का परिणाम हाल की कुछ घटनाओं से समझा जा सकता है जैसे छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी नेताओं की नक्सलियों द्वारा हत्या, कांग्रेसी सदमे में और लोग सकते में, लोगों ने कहा यह झटका है देश के लोकतांत्रिक ढाँचे पर. वही लोग इस जोर के झटके से उबर नहीं पाए थे कि अचानक आईपीएल की ख़बरें चिराग के जिन्न के समान प्रकट हुईं, देश भौंचक्का रह गया. लोगों को अहसास हुआ कि वे मंहगे टिकट खरीदकर स्टेडियम के भीतर क्रिकेट का कोई खेल देखने नहीं आये हों बल्कि वहाँ तो मदारी का खेल चल रहा है जहाँ अतिविशिष्ट दर्शक दीर्घा में बैठे मदारी अपनी मनमर्जी से जब चाहे गेंद पर सिक्सर और नो बाल करवा सकते हैं और पोल खुलने पर दर्शक को सकते में डाल सकते हैं. मोहल्ले में जब मदारी तमाशा दिखाने आता था तो डमरू की आवाज से ही पूरे मोहल्ले के बच्चों को पता लग जाता था कि मदारी अपना खेल दिखाने आ गया है और बन्दर-बंदरिया उसके इशारे पर नाचेंगे, पर यहाँ तो डमरू की आवाज ही नहीं आयी, किसके कहने पर किसने और क्या खेल दिखाया, इसे जब हमारी सरकारी और पुलिसिया तंत्र ही ठीक तरह से नहीं समझ पा रही है तो भला दर्शक के समझ की क्या बिसात, उसे तो थपड़ी बजाने से मतलब है. बाद में श्रीनिवासन के दामाद का नाम आने पर श्रीनिवासन के पीछे मीडिया के लोग दौड़े कि कम से कम उन्हीं का इस्तीफा मिल जाए पर दाल गली नहीं और तमाम हो हल्लाओं के बीच श्रीनिवासन की ख़ामोशी जीत गयी. ऐसे ही एक खबर अभी दो-चार दिनों पूर्व ही एक और खबर पढ़ने में आयी कि लखनऊ की एक आरटीआई कार्यकर्त्ता ने रॉबर्ट वाड्रा के भूमि सौदों की जानकारी चाही थी लेकिन सरकार ने इन रिकार्डों को गोपनीय बताकर देने से इनकार कर दिया.
बहरहाल जदयू के तलाक के समाचारों ने एक और अहम काम किया कि उसने कोल-गेट स्कैम से संबंधित खबर को प्राइम टाइम से दूर कर दिया जिसमें सीबीआई को नवीन जिंदल के खिलाफ कुछ पुख्ता सबूत मिले थे. जिंदल का शायद अंक शास्त्र प्रबल रहा होगा और वे भाग्यशाली ही हैं अन्यथा ज्यादा नहीं बस डेढ़ से दो वर्ष पहले के दृश्यों को याद कीजिये, भ्रष्टाचार के खिलाफ चली आंधी तूफ़ान में आम आदमी कैसे इसे जड़ से उखाड़ने के लिए कूद पड़ा था पर अब जिंदल को कोई संज्ञान में ही नहीं ले रहा है सिवाय ज़ी न्यूज वालों के क्योंकि इस आग ने उनके एडिटर को भी झुलसा दिया था.
इसी बीच तीन और अहम ख़बरें किसी धारावाहिक के एपिसोड के समान अलग-अलग दिनों में सामने आयीं पर जदयू की इसी तलाक की कहानी में वो भी गुम हो गयीं. हो सकता है आप इन कड़ियों को जोड़कर इनका कुछ अर्थ निकाल सकें. पेट्रोलियम मंत्री मोइली ने कुछ धमकी आदि की बात कही थी, मोइली की बात को दो ही दिन हुए कि पेट्रोल के दाम दो-ढाई रुपये बढ़ा भी दिए गए और फिर मोइली द्वारा रिलायंस इंडस्ट्री को राहत देने के संकेत भी दिए गए. इन तीनों ख़बरों से ऐसा लगा जैसे मोइली के बयान को धारावाहिक की तीन कड़ियों में प्रसारित किया गया हो.
ब्लॉग ज्यादा लंबा खिंच रहा है इसलिए समापन करने की इजाजत लेती हूँ. पर चलते-चलते अभी भी मन में प्रश्न कौंध रहा है कि नीतीश गुड़ खाने के लिए तैयार थे तो उन्हें गुलगुले से परहेज को पूरी तरह से स्पष्ट करना चाहिए था. फिलहाल मुझे तो यही लगता है कि राजनीतिक कैरम बोर्ड की बिसात पर नरेंद्र मोदी एक स्ट्राइकर के रूप में उभर कर आये हैं और उनके आते ही या तो कुछ गोटियां स्ट्राइकर से टकराकर नहीं तो कुछ गोटियां दूसरी गोटियों से टकराकर बोर्ड के कोनों में बने छिद्रों में चली गयीं और अब जो बची हैं वे अपनी बारी का इंतज़ार कर रहीं हैं
क्योंकि साम्प्रदायिकता और जातीयता के आधार पर लोगों के मन में डर बिठाकर जिस खतरनाक खेल को खेला जा रहा है, खेल के ऐसे खिलाडियों को अब हम नेता नहीं मान सकते
क्योंकि साम्प्रदायिकता और जातीयता के आधार पर अब हम राजनीतिज्ञों को और ज्यादा रोजगार नहीं दे सकते
क्योंकि यदि हमने ऐसा कर दिया तो हमारी अगली पीढ़ियों को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी जिसकी जिम्मेदारी हम सब पर ही आएगी
क्योंकि वैचारिक रूप से बंजर हो चुकी सत्ताओं को हमारी और आपकी जागरूकता ही उपजाऊ बना सकती है
क्योंकि देश के लाखों करोड लुट चुके हैं, देश और लुटे यह अब बर्दाश्त नहीं है. हम अपना ध्यान भ्रष्टाचार से नहीं भटका सकते
क्योंकि अब आम आदमी मत को दान करके राजनीति नहीं करेगा बल्कि शीर्ष पर बैठे लोगों द्वारा आर्थिक लूट के आतंक को समाप्त करने को सामने आएगा
क्योंकि सवा सौ करोड़ लोग समझ चुके हैं कि भारत के भाग्य का मूलांक दो सौ बहत्तर में निहित है इसलिए वो सवा सौ करोड़ में से दो सौ बहत्तर ऐसे लोगों को लायेंगे जो हमें उन पर गर्व करने पर मजबूर करेंगे
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