- 68 Posts
- 449 Comments
देश में मंहगाई दर बढती जा रही है और मुद्रा स्फीति की दर लुढ़कती जा रही है, विश्व वैश्विक मंदी से घबराया हुआ है और इन सबका बुरा असर भारत के विकास पर पड़ रहा है. ऐसे में देश में एक और घोटाले की बात करते हुए हम एक दूसरे को हार्दिक बधाई देते हुए अब केवल पीठ ही थपथपा सकते हैं क्योंकि यही एक क्षेत्र ऐसा बचा है जहाँ हम लगातार तरक्की पर हैं.
अब तो जब भी देश में किसी घोटाले की खबर आम होती है तो लगता है कि हम एक और पदक जीतने में कामयाब हो गए. एक ओर अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक संघ ने ओलम्पिक खेलों से कुश्ती को बाहर का रास्ता दिखने का फैसला लिया है और पिछले दो बार से ओलम्पिक में भारत को पदक दिलाकर भारत की लाज रखने वाली कुश्ती पर ओलम्पिक में पदक जीतने पर ग्रहण लग गया है तो वहीं दूसरी तरफ आगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर के सौदे में इटली की कंपनी फिनमैकेनिका द्वारा भारत में साढ़े तीन सौ करोड़ रुपये से ज्यादा की बांटी गई रकम जो कि पता नहीं दलाली है या रिश्वत है या घोटाला है उसने भारत की विश्व में साख पर एक और तमगा जड़ दिया है.
देश में बड़ी ही अजीब सी विडम्बना है, सीबीआई को घोटालों में कोई सबूत नहीं मिलता है और हमारे पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी.के.सिंह राष्ट्रीय मीडिया को साक्षात्कार देते समय स्वीकार करते हैं कि विदेशी कंपनी के साथ होने वाले रक्षा सौदे में रिश्वत की पेशकश की जाती है. इसका अर्थ क्या निकला जाए, समझदारों के लिए एक मूर्खतापूर्ण प्रश्न हो सकता है यह या फिर हो सकता है कि इस लेन देन को अंजाम देने वाले सीबीआई से ज्यादा चतुर होते हैं या फिर सरकारी नियंत्रण का कमाल है ये. केवल रक्षा सौदों की बात करें तो बोफोर्स तोप दलाली की रजत जयंती तो हम मना ही चुके हैं और नतीजा वही ढाक के तीन पात वाला ही है. वैसे केवल रक्षा सौदे ही क्यों, आज तक इक्का दुक्का घोटालों को छोड़कर सारे घोटालों का हश्र तो एक जैसा ही है. ना तो घोटाले बाज पकडे गए और ना ही घोटाले की रकम ढूंढी जा सकी. इसलिए उम्मीद ही नहीं बल्कि मेरे जैसे तमाम भारतीय पूरे आत्मविश्वास के साथ यह कह सकते हैं कि ऐसे समस्त घोटाले बहस और आरोप प्रत्यारोप के साथ केवल टाले ही जायेंगे.
फिलहाल निवर्तमान घोटाले को लेकर कांग्रेस जिस प्रकार से हेलिकोप्टर के स्पेसिफिकेशन में बदलाव को लेकर भाजपा के कार्यकाल पर ऊँगली उठा रही है तो वह टेन्डर प्रक्रिया के जानकारों को हजम नहीं होगा. क्योंकि टेन्डर फ्लोटिंग, टेन्डर कमिटी की सिफारिशें, कांट्रेक्ट अवार्डिंग / एक्सेप्टेंस ये सब कुछ कांग्रेस के कार्यकाल में ही हुआ, इसलिए यदि सरकार को ऐसा लगता है कि एनडीए सरकार या कोई और गलत था तो भी वह इस घोटाले को होने से रोक सकती थी..
स्पेसिफिकेशन पर एक बात और, मेरी सेमी ऑटोमेटिक वाशिंग मशीन काफी पुरानी हो चली थी इसलिए मैंने सोचा कि उसे बदलकर नयी फुल ऑटोमेटिक वाशिंग मशीन खरीदी जाए. फिर देर क्या थी मैंने इंटरनेट पर पड़ताल शुरू कर दी, कोशिश यही थी कि मेरे बजट के अंदर ही मुझे ऐसी वाशिंग मशीन मिल जाये जिसमें सामान्य फीचर के अतिरिक्त ऐसी व्यवस्था भी हो कि कपड़े धुलने के पश्चात ऐसे सूख जाएँ कि उन्हें धूप में फैलाना भी ना पड़े और साथ ही इस्तरी भी मरने की जरुरत ना हो. अब तक की तकनीक में ऐसी कोई मशीन उपलब्ध नहीं थी इसलिए जो बेस्ट था उसमें से मुझे एक चुनना पड़ा.
यह अनुभव मैंने इसलिए लिखा ताकि हम इस हेलिकोप्टर खरीद घोटाले में स्पेसिफिकेशन बदलने के जो तर्क दिए जा रहे हैं उसे आसानी से समझ सकें. मान लीजिए जैसा कि कहा जा रहा है कि जिस स्पेसिफिकेशन का हेलिकोप्टर लिया जाना था उसमें कंपनी के हित को ध्यान में रखकर जानबूझकर कुछ बदलाव किये गए. यह तर्क तब मान्य होता जब आप एकल निविदा (सिंगल टेन्डर) की सूचना जारी कर रहे हों. परन्तु यह तर्क तब आधारहीन हो जाता है जब आप एकल निविदा (सिंगल टेन्डर) की बजाय खुली निविदा (ओपन टेन्डर) करते हैं. बल्कि इस मामले में तो ओपन ग्लोबल टेन्डर हुआ था अर्थात हेलिकोप्टर बनाने वाली कोई भी कंपनी इस टेन्डर में भाग ले सकती थी. और जहाँ तक मैं समझ सकती हूँ तो इस मामले में यह टेन्डर टू पैकेट सिस्टम पर आधारित रहा होगा. टू पैकेट सिस्टम में पहले तकनीकी दृष्टि से ऑफर को परखा जाता है और उसमें जो कंपनी योग्य पाई जाती है बाद में उसके मूल्य को देखा जाता है और अवश्यक्तानुसार निगोशिएट किया जाता है. अतः सरकार का स्पेसिफिकेशन बदलने का तर्क तकनीकी दृष्टि से कमजोर है और यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि मामले की गंभीरता को लेकर वह गंभीर नहीं है. इसके दो कारण हो सकते हैं, या तो घोटाले अब इस सरकार के लिए कोई अहमियत नहीं रखते हैं या फिर इस घोटाले में वह स्वयं शामिल है.
एक बात और, जैसी खबर सरकार की तरफ से आ रही है कि इस ठेके को ही निरस्त कर दिया जायेगा और अगस्ता वेस्ट लैंड कंपनी को ब्लैक लिस्टेड कर दिया जाएगा तो इससे यही प्रतीत होता है कि सरकार घूस देने वाले को तो सजा दे देगी लेकिन सवाल फिर वही है कि क्या वह इस सौदे में भारत में घूस लेने वालों के नाम को सार्वजनिक नहीं करना चाहती, क्या वह उसे बचाना चाह रही है, क्या जैसी ख़बरें आ रहीं हैं कि इस घोटाले में तथाकथित “इटली कनेक्शन” का कोई विशेष मतलब है?
यह अफसोसजनक है कि सरकार के कार्यकाल में एक के बाद एक नए दाग लगते ही जा रहे हैं जिसे मिटा पाना अब उसके लिए संभव नहीं है. भारत के लिए यह शर्मनाक है कि घूस देने वाला तो पकड़ा गया लेकिन घूस जिन लोगों ने लिए उन पर हम केवल बहस और आरोप प्रत्यारोप तक सीमित हैं. सरकार के रवैये से शक अब यकीन में बदल रहा है कि यह सब इसलिए किया जा रहा है कि इसमें शामिल लोग रकम और संबंधित सुरागों को ठिकाने लगा दें और जब सांप निकल जाए तो लकीर पीटने का नाटक शुरू हो जाये?
हमारे प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री दोनों ही अपनी साफ़ छवि के लिए प्रख्यात हैं, फिर भी अगर देश ऐसे किसी भी घोटाले में लिप्त लोगों के नाम नहीं जान सका तो यह निश्चित ही पूरे देश और देशवासियों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है.
Read Comments