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भारत के वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय छवि वाले नेता बन सकते हैं या नहीं यह प्रश्न आज नहीं तो कल उभरना ही था क्योंकि फिलहाल के राजनीतिक माहौल में देश की सबसे बड़ी पार्टी अर्थात कांग्रेस भी कोई सार्थक विकल्प दे पाने में असमर्थ साबित हो रही. कांग्रेस समेत ज्यादातर राजनीतिक दलों में भ्रष्ट तंत्र की जड़ें उम्मीद से कहीं अधिक गहराई तक जम चुकीं हैं. भारतीय राजनीति की आज सबसे बड़ी विडम्बना ये है कि देश के दोनों बड़े राजनीतिक दल स्वयं कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं अलबत्ता राजनीति के शतरंजी चाल में एक दूसरे की गलतियों का फायदा उन्हें बैठे बिठाये मिलता चला जा रहा है इसलिए कौन सी पार्टी अपने सामने वाले पार्टी के गलती का कितना फायदा उठा पाती है यह तो आने वाला समय ही बताएगा परन्तु सोशल मीडिया की साइट्स पर अगर नजर डाली जाये तो इस बात की चर्चा बहुत जोरों पर है कि ‘एक ही विकल्प मोदी’.
राजनीतिक संगठन हो या सामजिक संगठन, हर जगह अंतर्विरोध तो जग जाहिर है. यह अंतर्विरोध कभी कभी प्रयोगात्मक और नकारात्मक होने के साथ ही साथ रचनात्मक भी साबित होता है बशर्ते विरोध केवल विरोध के लिए नहीं हो. इसे दूसरे शब्दों में ऐसे भी कहा जा सकता है कि सोना आग में तपने के बाद ही खरा बनता है. यह तो प्रामाणिक तथ्य है कि जब कभी भी किसी भी संगठन में किसी का कद जैसे जैसे बढ़ता है वैसे वैसे उसके प्रतिद्वंदियों की संख्या भी बढती जाती हैं इसलिए इसमें कुछ भी नया नहीं है कि नरेंद्र मोदी का विरोध नहीं हो और इसीलिए भारतीय जनता पार्टी भी इससे अछूती नहीं रह सकती है. बहरहाल नरेंद्र मोदी गुजरात में लगातार तीन चुनावों में जीत हासिल कर यह साबित तो कर ही चुके हैं कि अब उनकी गुजरात से दिल्ली तक की छलांग में किसी प्रकार की विघ्न या बाधा नहीं आने वाली है. वैसे केवल गुजरात चुनावों को जीतना ही इसका एक मात्र कारण नहीं है बल्कि इसके कई अन्य कारण भी है जिनमे मेरी समझ से राष्ट्रीय मुद्दों पर उनका साफगोई अंदाज भी है. संभवतः बहुत से लोग इससे सहमत नहीं हों परन्तु यदि निष्पक्षता के साथ आंकलन किया जाए तो यह सत्य है.
मोदी के विरोधियों को शायद मोदी की यही साफगोई अखरती है. स्वामी विवेकानंद और सरदार पटेल को अपना आदर्श मानने वाले मोदी को कांग्रेस और मीडिया ने गोधरा कांड के लिए घेरने की पुरजोर कोशिश की जबकि मैं स्वयं आज तक गोधरा कांड में मोदी की गलती समझ नहीं पाई. बाबरी मस्जिद विध्वंस और गोधरा कांड का उल्लेख नहीं चाहते हुए भी मुझे करना पड़ रहा है (क्योंकि अनेकोंनेक बार अनेकों लोगों ने इस पर अपने विचार रखे हैं). बस मैं इतना जरूर जानती हूँ कि यदि इस काण्ड पर मोदी का प्रशासनिक नजरिया गलत होता तो इस कांड के बाद जब गुजरात में दोबारा चुनाव हुए तब वहां भारतीय जनता पार्टी मोदी के नेतृत्व में 182 सीटों में से 127 सीटों पर जीत हासिल नहीं कर पाती. दरअसल मोदी को इस घटना के लिए जिम्मेदार ठहराने में विपक्ष और मीडिया की भूमिका ज्यादा रही है और संभवतः इसीलिए न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी उस समय मोदी प्रशासन को ही जिम्मेवार ठहराया था.
ज्यादातर लोगों की तरह ही और शायद विज्ञान विषय की छात्रा रहने के कारण मैं भी गोधरा कांड को न्यूटन के गति नियम से आंकती हूँ जो चिरसम्मत यांत्रिकी के आधार हैं. इन तीन नियमों में प्रथम नियम तो यह है कि प्रत्येक पिंड तब तक अपनी विरामावस्था अथवा सरल रेखा में एकसमान गति की अवस्था में रहता है जब तक कोई बाह्य बल उसे अन्यथा व्यवहार करने के लिए विवश नहीं करता इसे जड़त्व का नियम भी कहा जाता है. इसी तरह द्वितीय नियम है कि किसी भी पिंड की संवेग परिवर्तन की दर लगाये गये बल के समानुपाती होती है और संवेग परिवर्तन की दिशा वही होती है जो बल की होती है और तीसरा नियम है कि प्रत्येक क्रिया की सदैव बराबर एवं विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है. न्यूटन के इन नियमों को विज्ञान में तो सभी ने प्रयोग किया लेकिन जब व्यवहारिक ज्ञान की बात आयी तो कोई भी उसे मानने को तैयार नहीं है.
बहरहाल इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति भिन्न-भिन्न स्वभाव के होते हैं और शायद इसी कारण से भिन्न स्वभाव के लोग किसी भी सत्य को विभिन्न तरीकों से प्रतिक्रिया देते हैं. भाजपा साम्प्रदायिकता है या कांग्रेस या फिर सपा ये तो उनके नेता जब अपने दिलों पर हाथ रखकर स्वयं से पूछें तो भी शायद वे समझ नहीं पायेंगे लेकिन एक बात तो तय है कि भारतीय राजनीति का पतन उम्मीद से कहीं ज्यादा हो चुका है जहाँ आज राष्ट्र धर्म जैसे विषय दो कौड़ी के होकर रह गए है. राजनीति का अपना गुण धर्म होता है परन्तु पता नहीं क्यों यह अपने साथ नकारात्मक गुणों को ज्यादा समेटे हुए है. जैसे अग्नि का स्वभाव झुलसा देना है और पानी का स्वभाव नीचे की ओर बहना है कुछ उसी तरह भारतीय राजनीति का अपना एक स्वाभाव बन गया है एक दूसरे पर कीचड़ उछालते रहने का और अनर्गल बयान देने का. महात्मा गाँधी ने कहा था कि नियम यदि एक क्षण के लिए टूट जाये तो सारा सूर्यमंडल अस्त-व्यस्त हो जाए परन्तु फिलहाल तो भारतीय राज नीति में कोई नियम धर्म नहीं है.
एक वक्त था जब किसी नेता को सुनने के लिए मन बेचैन होता था परन्तु आज नेता के बयान के नाम पर चिढ़ होती है परन्तु ऐसे माहौल में नरेंद्र मोदी एक बेहतर विकल्प नजर आते हैं क्योंकि उनका व्यक्तित्व और उनकी शैली प्रभावित करती है. मोदी तमाम मसलों पर अंतर्विरोध के साथ ही वाह्य विरोध का भी सामना कर चुके है खासतौर पर गोधरा काण्ड पर लेकिन इसके साथ ही उन्होंने अपने आपको पूरी तरह से साबित भी किया हैं. इससे भी अच्छी बात ये है कि भावी प्रधानमंत्री पदों के उम्मीदवारी में मोदी कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी की तरह निर्विरोध नहीं हैं. शायद मोदी का यही अनुभव और विरोधियों से टकराने की उनकी खासियत मोदी को आगामी लोकसभा चुनाव के लिए मुख्य सूत्रधार के रूप में स्थापित करने के लिए पर्याप्त है क्योंकि कठिनाइयों के बिना किसी भी नेता में कभी पूर्णता नहीं आती है.
मोदी अपने राजनीतिक जीवन में बहुत कुछ ऐसा कर चुके हैं कि राष्ट्रीय राजनीति में अब उन्हें रोक पाना नामुमकिन है. महर्षि वेदव्यास ने महाभारत में लिखा भी है कि जैसे सूर्य आकाश में छिप कर नहीं रह सकता, वैसे ही मार्ग दिखलाने वाला भी छिपकर नहीं रह सकता. मोदी ने गुजरात में विकास पुरुष की भूमिका निभाकर अपने आपको राजनीति के चमकते सूरज के रूप में प्रतिस्थापित कर दिया है और अब वक्त आ गया है कि वे गुजरात के ही नहीं बल्कि देश के सर्वमान्य नेता चुने जा सकते हैं क्योंकि मौकापरस्ती की राजनीति करने वालों द्वारा देश की और फजीहत को बर्दाश्त करने की अब देश की व्यवस्थाओं में दम नहीं है.
फिलहाल तो दिनोदिन मोदी की कीमत उनके कामों से बढ़ रही है क्योंकि उद्योगपतियों से लेकर विदेशी मीडिया भी उनके गुणगान करने लग गयी है. कहते हैं कि जब आपकी कीमत बढ़े तो शांत रहिये, अपनी हैसियत का शोर मचाने का जिम्मा आपसे कम कीमत वालों का है क्योंकि सिक्के हमेशा आवाज़ करते हैं मगर नोट हमेशा खामोश रहते हैं. फिलहाल मोदी सही राह पर हैं और आगामी लोकसभा चुनाव मोदी की राजनीतिक हैसियत को और निखारेगी पर भविष्य के गर्त में क्या छुपा है यह तो वर्ष 2014 ही बताएगा. क्योंकि कौन बनेगा करोड़पति में पांच करोड़ जीतने के लिए पंद्रह प्रश्नों का उत्तर देना पड़ता है और जब बात हो सवा सौ करोड़ लोगों के दिलों को जीतने की तब कुछ प्रश्नों का सामना तो करना ही पड़ेगा.
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