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प्रयास उत्तम है – Jagran Junction Forum

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दुर्गा पूजा की धूम मची हुयी है, आज नवरात्र का आखिरी दिन है और कल पूरे देश में विजयदशमी का पर्व धूम धाम से मनाया जाएगा. जगह-जगह काल्पनिक रावण दहन होगा. एक ऐसा पर्व जो देश के हर कोने में बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है और इसे आयुध पूजा भी कहते हैं. परसों से फिर वही सन्नाटा, रावण मरेगा या केवल उसका पुतला दहन होकर रह जायेगा क्या पता. पुतला दहन आये दिन सरकार का उसकी नीतियों के खिलाफ होते ही रहते हैं चौराहों पर, परिणाम? मान्यता के अनुसार भगवान राम ने विजयदशमी के दिन अहंकारी रावण का वध किया था एवं सन्देश के तौर पर इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में लिया जाता है और इसीलिए इस दशमी को विजयदशमी के नाम से हम सभी जानते हैं. नए कार्य को प्रारंभ करना हो या शस्त्रों की पूजा करनी हो और या फिर विजय की प्रार्थना कर युद्ध अर्थात रण के लिए प्रस्थान करना हो, यह अवसर अत्यंत शुभ माना जाता है. दशहरा और विजयदशमी दोनों ही पर्व भारत में शक्ति पूजा की तरह हम सभी मानते हैं और एक बात और बड़ी ही स्पष्ट है कि इस लड़ाई में अहंकार को हमेशा पराजित ही दर्शाया जाता है. ज्ञान के साथ धैर्य भी विजयी होता है इसलिए इसे हम विजय पर्व भी मानते हैं. हमारी भारतीय संस्कृतिकी यही विशिष्टता है कि हम सभी वीरता को पूजते है और शौर्य की उपासना करते हैं. पर थोड़ी सिमट गयी है हमारी पूजन पद्धति, मंत्रोच्चारण में शब्दार्थ ध्यान नहीं रहता. शास्त्रों के अनुसार दशहरा पर्व दस प्रकार के पापों को नाश करने के लिए हम मानते हैं जिनमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी जैसे पाप हैं. इन पापों का परित्याग करते हुए ईश्वर के ध्यान और पूजन से सद्प्रेरणा प्राप्त करते हैं पर क्या ऐसा हो रहा है?

कुछ समय पूर्व जन लोकपाल बिल के लिए समाजसेवी अन्ना हजारे की अनशन समाप्ति के बाद काले धन के साम्राज्य को चुनौती देने के लिए स्वामी रामदेव जब अपने समर्थकों के साथ रामलीला मैदान पर अनशन के लिए डटे तो कानून मंत्री सलमान खुर्शीद जी का एक व्यंग्यात्मक बयान आया कि हमारे देश में हर वर्ष ऐसी रामलीलाएं आयोजित की जाती है. राजनेताओं खासतौर पर कांग्रेस के घमंड का तभी यह आभास हो गया था कि एक लोकतांत्रिक देश में किसी समाजसेवी और किसी संत के अच्छे प्रयासों की खिल्ली उड़ाने वाले अपनी हरकतों और बयानों से जल्दी ही उलझन में होंगे और वैसा ही हुआ. आज कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के मामले से कांग्रेसी पीछा छुडा नहीं पाए कि खुर्शीद सपत्नीक अपने ट्रस्ट के द्वारा किये गए घोटाले के झमेले फंस गए. बात इतनी ही नहीं है बल्कि घोटालों की लंबी सूची का ग्रन्थ तैयार है. कहा जा सकता है कि आज भारतीय लोकतंत्र अपने समय के कठिनतम दौर से गुजर रहा है जहाँ इसके रखवालों द्वारा लोकतंत्र की ह्त्या आम है. जिस आम आदमी का लोकतंत्र की परिभाषा में सबसे ज्यादा बार जिक्र है वही आम आदमी इस खून-खराबे का दुष्परिणाम भी सबसे ज्यादा भुगत रहा है. छोटे और बड़े कई उदहारण हैं चाहे उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में मुख्य चिकित्साधिकारी के साथ एक मंत्री की बदसुलूकी और दबंगई हो, हरियाणा में औसतन रोज एक बलात्कार से ज्यादा के आंकड़े हों, गुजरात में किसी सांसद द्वारा टोल टैक्स मांगने पर हवाई फायरिंग हो कह सकते हैं कि कोई ना तो बदलने के लिए तैयार है, ना अपनी गलती स्वीकारने के लिए तैयार है और ना ही कोई कार्यवाही करने के लिए तत्पर दिखाई देता है. यही नहीं राजनीति के गलियारों के कुछ प्रभावशाली राजनीतिज्ञों द्वारा जिस प्रकार से ईमानदार नौकरशाहों के प्रति मनमाना रवैया अपनाया गया उससे तो यही प्रतीत हो रहा है कि सत्ता की शक्तियां मिलने के बाद राजनीतिज्ञ किस प्रकार उसका दुरुपयोग कर सकते हैं और इसका तजा उदहारण हैं हरियाणा के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी अशोक खेमका..बात यहाँ नहीं रुकी क्योंकि कानून मंत्री नेजिस प्रकार से अरविन्द केजरीवाल को फर्रुखाबाद से सकुशल वापस नहीं लौट पाने की धमकी दी, रेणुका चौधरी जिस तरह से स्वामी रामदेव के बयान पर मीडिया में बरसीं उससे तो लगता है कि एक नए प्रकार का आतंक-वाद राजनीति के गर्भ से निकलने के लिए बेताब है.

प्रश्न है इन सबसे लड़ेगा कौन, वो जो गैस सिलिंडर की सब्सिडी हटते ही पसीने से नहा जाता है, घर में किसी के बीमार पड़ते ही पैसों के आभाव में खुद बीमार पड़ जाता है, नहीं उससे उम्मीद करना बेमानी है. पर वह लड़ सकता है या यूँ कहें कि उसे लड़ना ही होगा, तब जब उसके जान पर बन जाएगी. जब पता हो कि बगैर लड़े अब जान नहीं बचने वाली तो भूखे पेट लड़ने के लिए भी तैयार होना पड़ता है. भले ही हमारे विद्यालयों में सभी को राजनीति नहीं पढ़ाई जाती हो लेकिन हमारी भारतीय संस्कृति में हमेशा से ही वीरता, शौर्य एवं पराक्रम का समर्थन किया गया है और अगर कभी किसी कारणवश युद्ध अनिवार्य हुआ भी है तो राजनीति तो यही कहती है ना कि शत्रु के आक्रमण की प्रतीक्षा नहीं करते हुए यथाशीघ्र उस पर हमला कर देना चाहिए जिससे शत्रु का शीघ्र दमन किया जा सके. हमारे कुशल राजनीतिज्ञ इस बात को हमसे बेहतर समझ गए, पर हम जिसे हारने की आदत है हम सभी ने अपने ग्रंथों को कपडे में लपेटकर पूजा स्थल पर रख दिया और आँख मूंदकर ध्यान में बैठ गए. ना रामायण ने यह सिखाया था और ना ही श्रीमद भगवद् गीता ने.

वैसे जागरण जंक्शन के फोरम में इस बार के उठाये गए प्रश्न को पढते ही मुझे गोस्वामी तुलसीदास जी की एक रचना श्रीरामशलाका प्रश्नावली की याद ताजा हो आयी. जिन लोगों ने सोलहवीं शताब्दी के महाकाव्य रामचरित मानस के पृष्ठों को पलटा होगा उन्हें इस प्रश्नावली के बारे में निश्चित तौर पर जानकारी होगी. इस प्रश्नावली में एक 15×15 ग्रिड में कुछ अक्षर एवं मात्राएँ लिखी हुयी हैं और मान्यता है कि जब भी किसी को अपने अभीष्ट प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने की इच्छा उत्पन्न हो तो उसे भगवान श्रीरामका ध्यान करके अपने अभीष्ट प्रश्न का चिंतन करते हुए श्रीरामशलाका प्रश्नावली का सहयोग लेना चाहिए और यदि पूरे मनोयोग के साथ भगवान का ध्यान किया जाए तो प्रश्न का उत्तर भी बिलकुल ठीक मिलता है जो प्रश्नकर्ता को भविष्य के लिए एक प्रकार का दिशा निर्देश प्रदान कर देता है. मैंने जागरण जंक्शन फोरम के प्रश्न “संसद तक पहुंचाने में कितनी सफल होगी अरविंद केजरीवाल की रणनीति” पर अपनी राय देने से पहले इस प्रश्न का उत्तर ढूँढने के लिए इसी श्रीरामशलाका प्रश्नावली का सहयोग लिया और मुझे जो उत्तर प्राप्त हुआ वो इस प्रकार है:

प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदय राखि कोसलपुर राजा – यह चौपाई सुन्दरकाण्ड में श्री हनुमान जी के लंका में प्रवेश करने के समय की है और इसके फल के बारे में लिखा है कि भगवान का स्मरण करते हुए कार्य आरम्भ करो, सफलता मिलेगी.

अरविन्द केजरीवाल द्वारा लड़ी जा रही इस लड़ाई की शुरुआत कई मायने में अहम है क्योंकि प्रथम तो यह लड़ाई मात्र केजरीवाल की ही नहीं है बल्कि एक आम आदमी की है जिसे केजरीवाल लड़ने जा रहे हैं. कहते हैं लोहे को लोहा काटता है इसलिए राजनीति से गन्दगी को काटने के लिए राजनीति के अस्त्र की ही जरुरत थी. स्वामी रामदेव और अन्ना हजारे के राजनीति में नहीं आने की प्रतिज्ञा से जो गंदगी साफ़ होती नहीं दिख रही थी उसके लिए एक उम्मीद तो जागी ही है और मुझे लगता है कि स्वामी रामदेव और अन्ना हजारे से इस अस्त्र को समय-समय पर धार भी मिलेगा. मैं देश के एक सौ इक्कीस करोड़ की जनता, जिसे संविधान में आम आदमी कह कर परिभाषित किया है की तरफ से केजरीवाल को हार्दिक आभार और धन्यवाद अर्पित करती हूँ कि उन्होंने इस लड़ाई को स्वीकार किया और आम आदमी को नाली के कीड़े और थर्ड ग्रेड से थोडा पदोन्नत करवाकर गन्दी नाली से बाहर निकाला. आज उनके प्रयासों से कम से कम यही कीड़े इस योग्य तो हो ही गए हैं कि वे चींटियों की तरह सड़क पर रेंग भी सकते हैं. बस काम यह रह गया है कि अब इन भ्रष्ट राजनीतिज्ञों को इस यथार्थ के बारे में भी बताना है कि कभी-कभी एक अकेली चींटी ही हाथी पर भारी पड़ती है और यहाँ तो सवा सौकरोड़ चींटियों से उनका मुकाबला होना है.

अरविन्द संसद तक पहुंचेंगे या नहीं यह तो वक्त बताएगा क्योंकि भारत केवल शहरों में नहीं बसता है, इसलिए जीतने के लिए उन्हें जितनी जल्दी हो सके गाँवों का रुख भी करना होगा. ऐसे गांवों में जहाँ आज भी इन्हीं चतुर राजनेताओं की ही चलती है और जो अपने गाँव में इनके हेलिकोप्टर देखकर ही गदगद हो जाते हैं. साथ ही सत्य यह भी है कि प्रत्येक पांच वर्षों में एक बार लोकतंत्र की अदालत भी जरुर सजती है जहाँ न्यायाधीश की कुर्सी पर यही एक सौ इक्कीस करोड़ लोग होते हैं. यदि अरविद और उनकी टीम के सदस्य इन न्यायाधीशों को न्याय के लिए प्रेरित कर पाएंगे तो कार्य भी सफल होगा और जीत भी तय होगी. फिर कभी इतना बड़ा जन-जागरण शायद नहीं हो सके, इसके लिए कोशिश सब करेंगे ऐसी मुझे आशा है नहीं अपितु विश्वास भी है.

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