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गुरु जो आपको गोविन्द से मिला दे, गुरु जो आपको चलना सिखा दे, गुरु जो हमारा परिचय हमसे करा दे. गुरु वो जो हमारे दिशाहीन जीवन को दिशा दे, गुरु वो जो अंदर की शक्तियों को जागृत करा दे. कहते हैं जिसके जीवन में कोई गुरु नहीं होता है उसका पूरा जीवन अंधकारमय होता है. बिना गुरु के गति नहीं क्योंकि बिना गुरु के मति नहीं और जो मतिमान है वही महान है, ज्ञानवान है. यदि हमारा ज्ञान उन्नत नहीं होगा तब जीवन में बार बार ठोकरें खायेंगे, बीमार होंगे, दुखी होंगे, अशांत होगें, परेशान होंगे, झगडा करेंगे, आत्महत्या करेंगे, असफल होंगे. ज्ञान जितना उन्नत होगा हमारी वाणी, हमारी दृष्टि, हमारे कर्म, हमारा व्यव्हार, हमारा चरित्र, हमारा सम्पूर्ण जीवन उतना ही उन्नत होगा.
कहते हैं चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद मिलती है यह मानव योनि, बाकी योनिओं में तो हम सिर्फ कर्मों का फल भोगते हैं लेकिन मानव योनि में हम अपने किये हुए कर्मों का फल तो भोगते ही हैं साथ ही हमें कर्म करने का सौभाग्य भी मिलता है. ये कर्म कैसे होने चाहिए, जिससे हमारा यह जीवन सफल हो यह गुरु द्वारा प्रदत्त मार्दर्शन से ही संभव होता है. अक्सर लंबी जिंदगी जीते जीते लोग यह महसूस करने लगते हैं कि फूल तो इकट्ठे कर नहीं पाए काटों में दामन उलझ गया और जिंदगी भर काँटों से अपना पल्ला छुड़ाने में लगे रह गए. चलते चलते आदमी के जिंदगी कि सांझ हो जाती है लेकिन चलना नहीं आ पाता है. जीते जीते जीवन समाप्त होने को आ गया लेकिन व्यक्ति कहता है जीना नहीं आया. आदमी कहता है चले बहुत पहुंचे कहीं नहीं, उसी दायरे में घूमते घूमते जिंदगी पूरी हो गयी. हाथ में कुछ पीडाएं रह गयीं ज्ञान के आभाव में. पढ़े लिखे होने के बावजूद लगता है पढ़ाई लिखाई कहीं काम नहीं आई. टेक्निक सीखी थी रोजी रोटी कमाने की लेकिन जिंदगी जीने कि टेक्निक तो किसी ने सिखाई नहीं. जीवन को खुशियों से कैसे भर लिया जाए ये ज्ञान तो जिंदगी का मिला ही नहीं और देने बाले परमात्मा ने भी हमको जीवन दे दिया लेकिन जीवन जीने का ढंग नहीं दिया. जन्म दिया माता पिता ने, ये जीवन और साँसे दी भगवान ने लेकिन सांस लेने का ढंग किसी ने सिखाया ही नहीं. इसके लिए भगवान ने अपने प्रतिनिधि को चुना इसलिए हमारे गुरु ही भगवान के प्रतिनिधि है.
आज योग ऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज ने जहाँ एक तरफ ना सिर्फ भारत अपितु पूरे विश्व के लोगों को प्राणायाम और योग के माध्यम से सर्वप्रथम मन और शरीर को स्वस्थ रखने और बीमारियों से लड़ने का सूत्र दिया बल्कि वहीं दूसरी तरफ देश की समस्याओं, कालाधन,भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा आदि से मुक्त भारत बनने के लिए भी लगातार प्रयासरत हैं. जो लोग रामायण और गीता में वर्णित भारत के इतिहास को मात्र एक ग्रन्थ की तरह जानते और मानते हैं ऐसे कुछ लोगों को स्वामी रामदेव जी के योग मिश्रित इस प्रयोग से आपत्ति है. अखंड रामायण का पाठ करते हुए उन लोगों ने कभी यह ध्यान ही नहीं दिया कि भगवान राम और रावण के समय महर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र ने भी सत्ता और व्यवस्था परिवर्तन के लिए राजनैतिक हस्तक्षेप किया था. कौरवों और पांडवों के समय योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने और उनके संगी ऋषि मुनिओं ने हस्तक्षेप किया था और आचार्य चाणक्य ने घनानंद के पाप, अत्याचार तथा शोषण से मुक्ति दिलाई थी. ऐसे संतों, सन्यासियों की श्रृंखला लंबी है और अपवाद भी बहुतेरे हैं. समय के साथ साथ सोचने और करने का नजरिया भी बदलता है, पहले कहते थे कि प्राण जाय पर वचन ना जाये, बाद में यह परिष्कृत हो गया और कहा गया कि प्राण भी ना जाये और वचन भी ना जाये. योग के माध्यम से इस प्रयोग धर्मिता ने एक नए जीवन का दर्शन करा दिया है.
हर क्षेत्र में हिमालय की ऊँचाई रखने बाले कई महापुरुष हैं, चाहे राजनीति का क्षेत्र हो, व्यवसाय का क्षेत्र हो, धर्म का क्षेत्र हो लेकिन मुद्दा यह है कि क्या हिमालय पर जमे वो बर्फ कभी पिघलते भी हैं? नहीं तो वो ऊँचाई किस काम की. “वो बड़ाई किस काम कि जैसे पेड़ खजूर, पशु पंछी को छायो मिले नहीं फल लागे अति दूर” तो ऐसे जो शीर्षस्थ महापुरुष साधारण लोगों के पहुँच के बाहर हो जाएँ, जिनका कोई लाभ नहीं मिले गरीबों को, अज्ञानियो को, समाज को, राष्ट्र को तो वह ऊंचाई किसी काम की नहीं. उस ऊंचाई को देखकर अहोभाग्य भले हो जाये लेकिन वह जीवन का आदर्श नहीं हो सकती, इसलिए गुरु भी सोंच समझ कर चुनना चाहिए.
वर्ष में आने वाले एक दिनी शिक्षक दिवस पर ही नहीं बल्कि हर पल, हर क्षण, जन्म-जन्मांतर तक ऐसे गुरु को मेरा शत-शत नमन. तन समर्पित, मन समर्पित और यह जीवन समर्पित, चाहती हूँ ऐसे गुरु के लिए हर जन्म समर्पित.
वंदना बरनवाल
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