- 68 Posts
- 449 Comments
एक अहम कांग्रेसी सदस्य और केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा का यह कथन कि वह दिनोंदिन बढ़ती महंगाई से बहुत खुश हैं, जितनी ज्यादा महंगाई बढ़ेगी उतना ज्यादा किसानों को फायदा होगा, यह वक्तव्य पूरे राष्ट्र ने सुना भी और पढ़ा भी. बहुत चिंतन के बाद कोई भी यह समझ नहीं पाया कि मंत्री महोदय ने यह बात कैसे कही. मेरे ख्याल से उनका यह वक्तव्य तीन कारणों के अंदर ही हो सकता है – प्रथम कि बिना सोचे समझे कह दिया, द्वितीय कि अज्ञानता में कह दिया और तृतीय कि वे लोगों का ध्यान बंटाना चाहते थे. उनका यह वक्तव्य किसी भी परिस्थिति में आया हो परन्तु उनके वक्तव्य पर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंत्री होने नाते लोग उन पर और उनकी पार्टी पर जरुर हँसेंगे ऐसा मेरा मानना है. वैसे कुछ मायने में उनकी दो तिहाई बिलकुल सही है लेकिन उसके एक तिहाई हिस्से में जबरदस्त गडबडी है.
भारत में बढती मंहगाई से सिर्फ वही नहीं, पूरी की पूरी उनकी गठबंधन सरकार, पूरा कांग्रेसी खेमा, देश के शून्य दशमलव शून्य एक प्रतिशत लोग और साथ ही विदेशी ताकतें भी बहुत खुश हैं. मंहगाई जितनी ज्यादा बढ़ेगी इन सभी की खुशी के मीटर की रीडिंग बढती जायेगी, इस लिहाज से कांग्रेसी सांसद महोदय की दो तिहाई बातें पूर्ण सत्य ही हैं. परन्तु एक तिहाई बात कि इससे किसानों को फायदा होगा यकीनन देश के किसानों के साथ ही साथ देश के निन्यानवे दशमलव नौ नौ प्रतिशत लोगों के साथ एक भद्दा मजाक ही है.
वातानुकूलित कक्षों में बैठ-बैठकर और ब्लैक कमांडो से घिरे ये राजनेता जो बाढ़ की मुसीबत आने पर हवाई सर्वेक्षण करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेते है उन्हें क्या पता कि बाढ़ की विभीषिका क्या होती है इसलिए उनसे इससे ज्यादा और क्या अपेक्षा की जाए. किसान का दर्द और उसकी पीड़ा जानने के लिए जेठ की गर्मी में खेतों में शरीर को तपाकर ताम्बायी करना पड़ेगा लेकिन इससे उनके सफ़ेद कपड़ों में दाग लगने का खतरा है. लेकिन भारतीय राजनीति का यह कौन सा रंग है और इस रंग में ना जाने कौन सा जादू है कि जो कोई भी थोडा ऊपर पहुंचा नीचे वालों को भूल गया. रंग का अर्थ तो तब साकार होता जब रंगों में रंगने वाले, रंगों में भीगने वाले और उस रंग को देखने वाले तीनों के मन विभोर हो जाते परन्तु राजनीति के ये नए रंग आये दिन गरीबों के मुख पर तमाचे की तरह पड़ रहे हैं.
आंकड़ों की बात करें तो पिछले दस सालों में मंहगाई जबरदस्त बढ़ी है वहीँ इन दस वर्षों में लगभग ढाई लाख किसानों ने आत्महत्या कर ली है और बयालीस फीसदी किसान विकल्प मिलने पर खेती को तत्काल छोड़ने के इच्छुक हैं और साथ ही पैसठ फीसदी किसान केवल खुद के पोषण लायक ही पैदावार कर पाते हैं. ऐसे में हमारे राजनीतिज्ञ शायद अपने शब्दों के खेल के अतिरिक्त कुछ नहीं कर सकते परन्तु उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि शब्द विचारों के वाहक होते हैं और राजनीति में शब्द पाकर वे अपने दिमाग के उड़ान पर नियंत्रण भी रखें क्योंकि हर पांच वर्षों में एक आम हिन्दुस्तानी को भी राजनीति करने का अवसर प्राप्त होता है.
एक चाइनीज कहावत है कि पहाड़ की चोटी पर पंहुचने के कई रास्तेह होते हैं लेकिन व्यूण सब जगह से एक सा दिखता है. देश के लिए संसद सर्वोच्च है और आज हमारे सभी सांसद अपनी मेहनत, लगन और जनता द्वारा चुने जाने के बाद उस शिखर तक पहुंचे हैं परन्तु वहाँ पहुँचने के पश्चात उनमें से अधिकतर नेता खास तौर पर सत्ता में बैठे लोग अपने आपको इतना ऊपर मानने लगे हैं कि उन्हें आम भारतीय बहुत ही तुच्छ नजर आने लगा है. क्या, क्यों, कब, कैसे, कहाँ और कौन ये वो छः ईमानदार सेवक हैं जिन्हें एक सफल संगठन को सदैव अपने पास रखना चाहिए क्योंकि यही छः चीजें उस संगठन की नींव में हमेशा विराजमान रहती हैं. सत्ता के मद में चूर कांग्रेस ने इन चीजों को बड़े ही गलत तरीके से याद कर रखा है जिसकी झलकियाँ जब-तब उसके मंत्रियों, नेताओं और प्रवक्ताओं से मिल ही जाया करती हैं,
वंदना बरनवाल
Read Comments