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थोड़ी देर और ठहर जाते…….होने वाली थी सहर

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यूँ तो गाने के बोल हैं ‘होने वाली है सहर, थोड़ी देर और ठहर’ परन्तु आदरणीय अन्ना हजारे अपने उत्साहित टीम को जन लोकपाल बिल और चौदह भ्रष्ट मंत्रियों के खिलाफ कार्यवाही को लेकर पिछले दस दिनों से जंतर-मंतर पर चल रहे अनशन के दौरान शायद समझा पाने में असमर्थ रहे और संभवतः स्वयं भी नहीं समझ सके. शायद इसीलिए आज़ादी के बाद के इस बेहतरीन और खूबसूरत जन आंदोलन, जो कि राष्ट्रव्यापी आन्दोलन में परिवर्तित हो रहा था, का अचानक पटाक्षेप हुआ. जिस प्रकार से टीम अन्ना ने अपने अनशन को तोड़ने और राजनीतिक दल बनाकर अहंकारी कांग्रेस और भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध करने के लिए राजनीति के हथियार को थामने का फैसला लिया उसका स्वागत होना चाहिए लेकिन पता नहीं क्यों उनका यह निर्णय आम आदमी की बेचैनी भी बढ़ा रहा है. मुझे लगता है कि अगर अन्ना और उनकी टीम यही निर्णय मात्र सप्ताह – दस दिनों बाद लेती तो शायद तस्वीर में कुछ और रंग भरते और आज़ादी के बाद से जिस समृद्ध और शक्तिशाली भारत का सपना एक आम आदमी देख रहा था वह उसके थोडा और करीब पहुँच जाता.

दरअसल गत वर्ष चार जून को सरकारी दुष्चक्र से निकलने के बाद एक बार फिर आगामी नौ अगस्त से स्वामी रामदेव काले धन के खिलाफ रामलीला मैदान से ताल ठोंकने वाले हैं और जैसा कि महसूस किया जा सकता है, इस बार की उनकी तैयारी गत वर्ष से कहीं ज्यादा है क्योंकि एक अनुभव वे ले चुके हैं सरकार एवं कांग्रेस के खिलाफ खड़े होने का. विधानसभा चुनावों के बाद से इस बात को सरकारी तंत्र भी बखूबी समझ रहा है तथा स्वामी जी के ऊपर दबाव बनाने के लिए उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण को अनर्गल आरोप लगाकर सीबीआई ने इसीलिए पहले ही जेल के अंदर डाल दिया है. अन्ना और उनकी टीम ने जिस प्रकार से भ्रष्टाचार से लड़ाई के लिए राजनीतिक हथियार उठाने का विकल्प अपने अनशन को बीच में छोड़कर अपनाया है उससे कालेधन के खिलाफ एकजुट होने वाले आन्दोलनकारियों और सरकार को वे लोग निश्चित्त तौर पर एक गलत सन्देश दे गए.

जहाँ एक और सरकार तो निश्चिन्त हो गयी और उसका कांफिडेंस का स्तर भी बढ़ गया कि जब उसने दस दिनों तक अन्ना के आंदोलन के सामने घुटने नहीं टेके तो अब तो किसी कीमत पर वे स्वामी रामदेव के आगे घुटने नहीं टेकेंगे वहीँ दूसरी और स्वामी रामदेव के साथ अनशन की तैयारी करने वाले भी कहीं ना कहीं यही सोचेंगे कि जब सरकार ने जनलोकपाल बिल पर हामी नहीं भरी तो भला काले धन को वापस लेन के लिए क्यों कर हामी भरेंगे क्योंकि यह काला धन भी तो उन्हीं का है.

इसलिए मेरी तो यही राय है कि काश अन्ना टीम थोड़ी देर (नौ अगस्त तक) और ठहरती, सहर तो होने ही वाली थी.

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