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पिछले कुछ दिनों में अचानक निर्मल बाबा के चमत्कारिक उपायों और उनके द्वारा आस्था के नाम पर कमाए गए करोड़ों रुपयों पर बवंडर मचा हुआ है जो कि भारत वर्ष जैसे देश में कोई नया मामला नहीं है. इन सारे मामलों में जितना दोषी निर्मल बाबा हैं उससे कहीं ज्यादा दोषी आस्था के नाम पर अपने गाढ़ी कमाई को बर्बाद करने वाले लोग हैं. बगैर मेहनत किये शार्ट कट से तरक्की पाने की चाह में लोग अक्सर सीना ठोंककर हंसी के पात्र बनने के साथ मूर्ख भी बनते है. कभी फाइनेंस कम्पनियाँ इसका जाल बुनती हैं तो कभी निर्मल बाबा जैसे लोग. एक ओर आस्था के नाम पर निर्मल बाबा के लूट का पर्दाफाश करने के प्रकरण में इलेक्ट्रानिक मीडिया सबसे आगे रहा वहीँ दूसरी ओर विश्वास के नाम पर कुछेक लूट को पैसे कमाने के लिए यही इलेक्ट्रानिक मीडिया बढ़ावा भी दे रहे हैं. उदाहरणार्थ कोई क्रीम बनाने वाली कंपनी अगर अपने प्रचार में दावा करे कि मात्र चौदह दिनों में उसकी क्रीम गोरा कर देगी तो क्या यह लूट नहीं है? क्या उस क्रीम को लगाकर एक दक्षिण भारतीय उत्तर भारतीय की तरह गोरा बन सकता है? हेल्थ ड्रिंक बनाने वाली कंपनी कहे कि उसके ड्रिंक से बच्चे की लम्बाई बढ़ जाएगी तो क्या यह लूट नहीं है, क्या अमिताभ बच्चन ने उसकी हेल्थ ड्रिंक पीकर लम्बाई हासिल की? कैफीन मिले कोल्ड ड्रिंक को ताजगी का श्रोत बताना क्या लूट नहीं है? और इस झूठे प्रचार को जब तमाम फ़िल्मी और क्रिकेट स्टार अपने अंदाज में बयान करें तो वह क्या वह दोषी नहीं है? परन्तु लूट के इन प्रचारों के लिए फ़िल्मी स्टार, क्रिकेट स्टार और इलेक्ट्रानिक मीडिया सभी को पैसे मिलते हैं इसलिए क्या वो जायज हो गया. निर्मल बाबा ने भी अपने तरह से प्रचार किया और लोग झांसे में आते चले गए. अब दोषी किस किसको ठहराया जाये आप स्वयं निर्णय करें.
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